Rukmini Ashtami

Rukmini Ashtami 2024 : रुक्मिणी अष्टमी व्रत करने से धन-धान्य की होती है प्राप्ति, जानें तिथि, महत्व व पूजा विधि

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पौस मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन द्वापर युग में देवी रुक्मिणी का जन्म हुआ था। देवी रुक्मिणी मां लक्ष्मी का ही अवतार मानी गई है। देवी रुक्मिणी भगवान श्रीकृष्ण की आछ पटरानियों में से एक थी। द्वापर युग देवी विदर्भ नरेश भीष्मक की पुत्री थी। यह भगवान की लीला ही थी कि उनका जन्म भी अष्टमी तिथि को  हुआ था और देवी रुक्मिणी और राजाधी का जन्म भी अष्टमी तिथि पर ही हुआ था। यही कारण है कि हिंदु धर्म में अष्टमी तिथि को बहुत ही शुभ माना गया है।

रुक्मिणी अष्टमी के दिन देवी की पूजा से धन-धान्य की वृद्धि होती है और दांपत्य जीवन में सुख का प्रसार होता है। देवी की पूजा से संतान की प्राप्ति होती है। रुक्मिणी अष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण के साथ देवी रुक्मिणी का पूजन करने से जीवन मंगलमय हो जाता है और जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति होती है।

रुक्मिणी अष्टमी तिथि

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इस वर्ष पौष मास 2024 में रुक्मिणी अष्टमी गुरुवार 4 जनवरी को है। कृष्ण के भक्त इस दिन व्रत रखते है और यह मानते है कि रुक्मिणी अष्टमी के दिन व्रत रखने से उनके धन धान्य में वृद्धि होगी। भगवान विष्णु ने कृष्ण के रुप में जब जन्म लिया था, तब माता लक्ष्मी ने रुक्मिणी जी के रुप में जन्म लिया था। रुक्मिणी जी के रुप में माता लक्ष्मी का जन्म इसी तिथि में हुआ था।

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रुक्मिणी अष्टमी पूजा विधि

रुक्मिणी अष्टमी के दिन सुबह स्नान कर व्रत और पूजन का संकल्प लें और इसके बाद एक पीढ़े पर देवी रुक्मिणी और भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। साथ ही कामदेव की तस्वीर भी रखें। इसके बाद दक्षिणावर्ती शंख में जल भर कर भगवान और देवी रुक्मिणी का भी अभिषेक करें। इसके बाद श्रीकृष्ण जी को पीला और देवी रुक्मिणी को लाल वस्त्र अर्पित करें। कामदेव को सफेद वस्त्र प्रदान करें। इसके बाद भगवान को कुमकुम और देवी सिंदूर अर्पित करें और इसके बाद सभी हल्दी, इत्र और फूल चढांए।

इसके बाद कृष्ण मंत्र और देवी लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करें। आखिर में तुलसी मिश्रित खीर का भोग लगा कर गाय के घी का  दीपक जलाएं और कर्पूर की आरती करें। शाम के समय दुबारा पूजा-आरती करके फलाहार ग्रहण करें। इस दिन रात जागरण करें। अगले दिन नवमी को ब्राहम्णों को भोजन करा कर व्रत को पूरा करें, इसके बाद स्वयं पारण करें।

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भगवान श्रीकृष्ण को मान लिया था पति

देवी के पिता नरेश भीष्मक अपने बेयी रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल से करना चाहते थे, लेकिन देवी रुक्मिणी श्रीकृष्ण से प्रेम करती थी और मन ही मन उन्हें ही अपना पति मान चुकी थी। देवी रुक्मिणी श्रीकृष्ण की बहुत बड़ी भक्त थी वे मन ही मन भगवान श्रीकृष्ण को अपना सबकुछ मान चुकी थी। जिस दिन शिशपाल से उनका विवाह  होने वाला था उस दिन देवी रुक्मिणी अपनी सखियों के साथ मंदिर गई और पूजा करने के बाद जब मंदिर से बाहर आई तो मंदिर के बाहर रथ पर सवार श्री कृष्ण ने उनको अपने रथ में बिठा लिया और द्वारिका जाकर देवी के साथ विवाह कर लिया। भगवान श्रीकृष्ण और देवी रुक्मिणी के पुत्र प्रद्मुन्न कामदेव है और अष्टमी के दिन इनकी पूजा भी जरुर करनी चाहिए।