Child Marriage: भारत में बाल विवाह प्राचीन समय से ही एक गहरी जड़ें जमाई हुई प्रथा रही है, जो आज भी कई स्थानों पर मौजूद है। शारीरिक और मानसिक परिपक्वता से पहले ही बच्चों और किशोरों की शादी करा दी जाती है। इसके पीछे कई कारण हैं, जैसे आर्थिक तंगी, बेटियों को पुरुष संरक्षण देना, पारंपरिक मान्यताएं और कई बार समाज की दमनकारी सोच।
यूनिसेफ के अनुसार, बाल विवाह वह विवाह है जिसमें कोई भी लड़की या लड़का 18 वर्ष से पहले शादी करते हैं। भारत में बाल विवाह को लेकर कानून भी हैं, जैसे बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006, जो यह मानता है कि 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की और 21 वर्ष से कम उम्र का लड़का बच्चा माने जाते हैं।
बाल विवाह पर कानून का शिकंजा
बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत, अगर कोई बच्चा कम उम्र में विवाह करता है, तो वह विवाह अमान्य हो सकता है। यही नहीं, यदि कोई वयस्क व्यक्ति बाल विवाह करता है तो उसे दो साल तक की सजा हो सकती है और जुर्माना भी लग सकता है। इस कानून में यह भी प्रावधान है कि अगर माता-पिता या अभिभावक बाल विवाह को रोकने में विफल रहते हैं, तो उन्हें भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
इसके बावजूद, कई भारतीय राज्यों में बाल विवाह की घटनाएं लगातार हो रही हैं, खासकर राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और अन्य राज्य जहां इस परंपरा का असर अधिक है।
कानूनी प्रावधान और उनकी वास्तविकता
हालांकि इस कानून के बावजूद, बच्चों के विवाह के मामले कम नहीं हो रहे हैं। इस अधिनियम के तहत किसी भी संदिग्ध बाल विवाह को रोकने के लिए न्यायालय को निषेधाज्ञा जारी करने का अधिकार है। अगर इस आदेश की अनदेखी की जाती है, तो यह विवाह स्वतः अमान्य हो जाता है। बाल विवाह निषेध अधिकारी इस कानून को लागू करने के लिए जिम्मेदार होते हैं, और वे समाज में जागरूकता फैलाने का कार्य करते हैं।
यह एक खतरनाक परंपरा है, जो आज भी भारतीय समाज में मजबूती से जड़ी हुई है। बाल विवाह के प्रभाव बच्चों के जीवन पर गहरे निशान छोड़ते हैं, और इससे जुड़े कानून यह दर्शाते हैं कि समाज को इसे समाप्त करने के लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत है।