कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि को हर साल देव दीपावली मनाई जाती है। हिंदू धर्म में दिवाली की तरह देव दीपावली का भी बहुत ज्यादा महत्व है। मान्यता है कि इस दिन देवतागण धरती पर आते है और दिवाली मनाते है।
हिंदू धर्म में हर पर्व-त्योहार का विशेष महत्व होता है। इसमें देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। ऐसे ही पर्व में से एक है देव दीपावली। इसे दिवाली के रुप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन देवतागण धरती पर विराजते है और दिवाली मनाते है। देव दिवाली कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाई जाती है।
शुभ मुहूर्त
हिन्दू पंचाग के अनुसार इस साल कार्तिक पूर्णिमा की शुरुआत 26 नवंबर को दोपहर 3 बजकर 52 मिनट से हो रही है और इसका समापन 27 नवंबर को दोपहर 2 बजकर 45 पर होगा। मान्यता है कि देव दिवाली हमेशा प्रदोष काल में मनाई जाती है। यदि हम प्रदोष काल की बात करें तो यह 26 नवंबर को पडेगा और इसलिए इसी दिन देव देवाली मनाई जाएगी। प्रदोष काल में 5 बजकर 8 मिनट से 7 बजकर 47 मिनट तक देव दीपावली मनाने का शुभ मुहूर्त है।
बन रहें तीन शुभ योग
26 नवंबर को तीन शुभ योग बन रहे है जिसमें रवि योग, परिघ योग और शिव योग है। रवि योग सुबह से दोपहर तक है। देव दीपावली के मुहूर्त के समय परिघ योग होगा। आज दोपहर से भद्रा भी लग रहा है। लेकिन इसका वास स्वर्ग में है। इसलिए कोई दुष्प्रभाव पृथ्वी पर नहीं होगा।
देव दीवाली पूजन सामग्री
दीया– देव दीवाली के दिन दीप दान करने का विशेष महत्व है इसलिए इसे मुख्य सामग्री माना जाता है। यह अंधेरे पर प्रकाश की जीत का प्रतीक माना जाता है।
अगरबत्ती या धूपबत्ती– विष्णु पूजन के समय धूप और दीप अर्पित करना प्रमुख माना जाता है। इससे वातावरण पवित्र रहता है।
कपूर– कपूर एक ऐसी सामग्री है जिसका इस्तेमाल घर की नकारात्मक ऊर्जा को कम करने के लिए किया जाता है।
फूल और मिठाई– देव दिवाली में पूजा के बाद प्रसाद के रुप में फल और मिठाई अर्पित की जाती है।
गंगाजल– गंगाजल का इस्तेमाल किसी भी स्थान की पवित्रता बनाए रखने के लिए किया जाता है। अगर आप देव दिवाली के दिन पूरे घर में गंगाजल छिड़कती है तो इससे घर की पवित्रता बढ़ती है।
पूजा विधि
देव दिवाली के अवसर पर किसी पवित्र नदी में स्नान करें या फिर घर पर ही पानी में गंगाजल डालकर स्नान कर ले। उसके बाद भगवान शिव की विधिपूर्वक पूजा करे। उनको बेलपत्र, भांग, धतूरा, अक्षत, फूल, माला, फल शहद, चंदन आदि अर्पित करें। घी का दीप जलाएं और उनके दाएं ओर रख दें। शिव चालीसा का पाठ करें और देव दिवाली की कथा सुनें, जिसमें उन्होंने असुरराज त्रिपुरासुर का वध किया था।
शाम को सूर्यास्त होने पर किसी नदी या तालाब के किनारे जाएं। वहां पर भगवान शिव का स्मरण करेंष फिर मिट्टी के दीपक में घी और रूई की बत्ती से दीप जलाएं। अपने घर के पूजा के स्थान पर भी देव दिवाली के दीपक जलाएं। इसके अलावा आप घर के पास के किसी शिव मंदिर में भी देव दिवाली के दीप जला सकते है।
क्यों मनाते है देव दिवाली
पौराणिक कथा के अनुसार त्रिपुरासुर के आंतक से सभी देवतागंण भयभीत थे। तब उसके आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान शिव आगे आए। उनके हाथों से त्रिपुरासुर मारा गया। इसकी खुशी में सभी देवता गण शिव नगरी काशी गए। वहां पर गंगा नदी में स्नान किया और शिव वंदना की। फिर प्रदोष काल में उन्होंने घी के दीप जलाएं। उस दिन कार्तिक पूर्णिमा तिथि थी। इस वजह से हर साल कार्तिक पूर्णिमा को प्रदोष व्यापिनी मुहूर्त में देव दिवाली मनाई जाती है।
देव दिवाली में दीपदान का महत्व
धार्मिक शास्त्रों में देव दिवाली के दिन गंगा स्नान के बाद दीपदान करने का महत्व बताया गया है। माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान के बाद दीपदान करने के पूरे वर्ष शुभ फल मिलता है। देव दिवाली ही नहीं बल्कि पूरे कार्तिक के महीने में दीप दान करना विशेष रुप से फलदायी माना जाता है। मान्यता है कि कार्तिक के पूरे महीने में सूर्य का आगमन तुला राशि में होता है। जिससे वातावरण में अंधकार बढ़ने लगता है।
ऐसे में दीप जलाकर अंधकार को कम किया जाता है। वहीं मान्यता है कि देव दिवाली के दिन जब सभी देवी-देवता काशी में पधारते है तब दीप दान करने से उनका आशीष मिलता है। यदि आप पूरे महीने दीप दान करने में असमर्थ है तो देव दिवाली के दिन जरुर घर के मुख्य द्वार पर, मंदिर में और किसी जलाशय के पास दीपक जरुर जलाएं।
काशी में सदियों से देव दिवाली मनाने की चली आ रही है परंपरा
देव दिवाली का यह पावन पर्व दिवाली के ठीक 15 दिन बाद मनाया जाता है। यह पर्व वैसे तो पूरे देश में मनाया जाता है। लेकिन मुख्य रुप से काशी में गंगा नदी के तट पर मनाया जाता है। मान्यता कि इस दिन देवता काशी की पवित्र भूमि पर उतरते है और दिवाली मनाते है।
देवों की इस दिवाली पर वाराणसी के घाटों को मिट्टी के दीयों से सजाया जाता है। काशी में कार्तिक पूर्णिमाके दिन देव दिवाली मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस दिन काशी नगरी में एक अलग ही उल्लास देखने को मिलता है। चारों ओर खूब साज-सज्जा की जाती है। इस दिन शाम के समय 11, 21, 51, 108 आटे के दीये बनाकर उनमें तेल डालें और किसी नदी के किनारे प्रज्जवलित करके अर्पित करें।