चौधरी बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह(Brijendra Singh) ने उचाना(Uchana) विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी है। दशकों से बीरेंद्र सिंह का परिवार उचाना से चुनाव लड़ता आया है और इस बार वे अपनी अगली पीढ़ी को यह जिम्मेदारी सौंपना चाहते हैं। बृजेंद्र सिंह, जो एक पूर्व IAS अधिकारी हैं, ने गांव-गांव जाकर जनसंपर्क शुरू कर दिया है। वे अपने पुराने समर्थकों से मिल रहे हैं और नए लोगों को भी अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
पिछले चुनाव में उचाना में चौटाला परिवार की स्थिति काफी खराब रही। यहां से विधायक दुष्यंत चौटाला अपनी मां नैना चौटाला को मात्र 4210 वोट ही दिलवा सके। भाजपा से चुनाव लड़ने वाले रणजीत चौटाला को 44885 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस के जयप्रकाश को 82204 वोट मिले थे। इन नतीजों से बीरेंद्र सिंह का परिवार उत्साहित है और उन्होंने बेटे बृजेंद्र सिंह को इस सीट से चुनाव लड़ाने की तैयारी शुरू कर दी है। बृजेंद्र सिंह ने 2019 में हिसार से लोकसभा चुनाव जीता था। उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा भाजपा से शुरू की थी और हिसार से रिकॉर्ड वोटों से जीते थे, मगर 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले उनका भाजपा से मोह भंग हो गया। किसान आंदोलन, अग्निवीर योजना और महिला पहलवानों के यौन शोषण जैसे मुद्दों पर उनकी भाजपा से असहमति हो गई थी।

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बृजेंद्र सिंह ने भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्हें उम्मीद थी कि कांग्रेस से लोकसभा का टिकट मिलेगा, मगर ऐसा नहीं हुआ। अब वे अपने पिता की पारंपरिक सीट उचाना से विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं।
राजनीति को किया काफी प्रभावित
उचाना विधानसभा हरियाणा की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यहां से चुने गए विधायकों ने हरियाणा की राजनीति को काफी प्रभावित किया है। अब बृजेंद्र सिंह भी यहां से चुनाव जीतकर हरियाणा की राजनीति में बड़ा योगदान देना चाहते हैं। चौधरी बीरेंद्र सिंह और उनकी पत्नी प्रेमलता ने भी अपना पहला विधानसभा चुनाव यहीं से लड़ा था और राजनीति में एक महत्वपूर्ण मुकाम हासिल किया था।
बीरेंद्र सिंह ने 3 बार जीता सांसद चुनाव
बीरेंद्र सिंह ने 5 बार उचाना से जीतकर हरियाणा विधानसभा में विधायक का पद संभाला (1977-82, 1982-84, 1991-96, 1996-2000 और 2005-09) और 3 बार हरियाणा में कैबिनेट मंत्री रहे। इसके अलावा, उन्होंने 3 बार सांसद का चुनाव भी जीता। बीरेंद्र सिंह ने अपना पहला चुनाव 1972 में लड़ा था और 1972 से 1977 तक वे ब्लॉक समिति उचाना के चेयरमैन रहे। 1977 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के टिकट पर उचाना कलां निर्वाचन क्षेत्र से विधान सभा चुनाव लड़ा और बड़ी जीत हासिल की, जबकि उस समय देश में कांग्रेस विरोधी लहर थी।