हर साल भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज का व्रत रखा जाता है। इस साल हरतालिका तीज का व्रत आज रखा जाएगा। इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य की कामना के साथ व्रत रखती हैं और पूजा करती हैं। वहीं कुंवारी लड़कियां भी अच्छे वर की कामना के साथ इस व्रत को रखती हैं। ये निर्जला व्रत होता है।
मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से बहुत लाभ मिलता है। हरतालिका तीज के दिन महिलाएं पूजा से पहले सोलह श्रृंगार करती हैं। साथ ही पूजा के दौरान मां पार्वती को भी सुहाग का सामान अर्पित करती हैं। इस व्रत में कुछ खास चीजों का होना जरूरी होता है, क्योंकि इनके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।
हरतालिका तीज की तिथि
पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि की शुरुआत कल सुबह 11 बजकर 08 मिनट से हुई थी। यह तिथि आज दोपहर 12 बजकर 39 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि को देखते हुए हरतालिका तीज का व्रत आज यानि सोमवार को रखा जाएगा।
हरतालिका तीज की पूजा सामग्री
हरतालिका तीज की पूजा में सूखा नारियल, कलश, बेलपत्र, शमी का पत्ता, केले का पत्ता, धतूरे का फल, घी, शहद, गुलाल, चंदन, मंजरी, कलावा, इत्र, पांच फल, सुपारी, अक्षत, धूप, दीप, कपूर, गंगाजल, दूर्वा और जनेऊ आदि सामग्री को शामिल किया जाता है।
हरतालिका तीज की सुहाग सामग्री
हरतालिका तीज का व्रत देवी पार्वती ने शिव जी को अपने पति के रूप में पाने के लिए किया था। इसीलिए इस व्रत में सुहाग सामग्रियों का भी महत्व है। सुहाग की सामग्री में बिंदी, सिंदूर, कुमकुम, मेहंदी, बिछिया, काजल, चूड़ी, कंघी, महावर आदि को शामिल करें।
हरतालिका तीज व्रत नियम
1.यह निर्जला व्रत होता है, इसलिए इस दिन गलती से भी पानी न पीएं
2.प्रत्येक पहर में मां पार्वती और भगवान शंकर की पूजा और आरती करें।
3.इस दिन घी, दही, शक्कर, दूध, शहद का पंचामृत चढ़ाएं।
4.सुहागिन महिलाओं को सिंदूर, मेहंदी, बिंदी, चूड़ी, काजल सहित सुहाग पिटारा दें।
अगले दिन भोर में पूजा करके व्रत का उद्यापन करें।
क्यों पड़ा हरतालिका तीज नाम?
हरतालिका दो शब्दों से बना है, हर और तालिका। हर का अर्थ है हरण करना और तालिका का सखी। यह पर्व भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है, इसलिए इसे तीज कहते हैं। इस व्रत को हरतालिका इसलिए कहते है, क्योंकि पार्वती की सखी उन्हें पिता के घर से हरण कर जंगल में ले गई थी।
हरतालिका तीज व्रत कथा
लिंग पुराण की एक कथा के अनुसार मां पार्वती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय पर गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया। इस दौरान उन्होंने अन्न का सेवन नहीं किया। कई वर्षों तक उन्होंने केवल हवा पीकर ही व्यतीत किया। माता पार्वती की यह स्थिति देखकर उनके पिता अत्यंत दुखी थे।
इसी दौरान एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर मां पार्वती के पिता के पास पहुंचे, जिसे उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया। पिता ने जब मां पार्वती को उनके विवाह की बात बताई तो वह बहुत दुखी हो गईं और जोर-जोर से विलाप करने लगी। फिर एक सखी के पूछने पर माता ने उसे बताया कि वह यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही हैं, जबकि उनके पिता उनका विवाह विष्णु से कराना चाहते हैं। तब सहेली की सलाह पर माता पार्वती घने वन में चली गई और वहां एक गुफा में जाकर भगवान शिव की आराधना में जाकर भगवान शिव की आराधना में लीन हो गई।
भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र को माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया। तब माता के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी के रूप मे स्वीकार कर लिया।