अश्वत्थामा

क्या कलयुग में भी जिंदा है Mahabharat का अश्वत्थामा, रहस्य से भरी है ये कहानी

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Mahabharat में अनेको श्रापो का वर्णन है, हर श्राप में कोई न कोई कारण छुपा था। कुछ श्रापों में संसार की भलाई निहित थी, तो कुछ के पीछे कथाओं की महत्वपूर्ण भूमिका थी। आप सभी ने Mahabharat तो जरूर देखी होगी। जिसके हर किरदार से हम सब वाकिफ है।

उनमें से एक किरदार अश्वत्थामा का भी था। अश्वत्थामा द्रोणाचार्य के पुत्र थे जिन्होंने कौरवों और पांडुवों को घनुष विद्या सिखाई थी। जन्म से ही अश्वत्थामा अपने पिता की तरह पराक्रमी और धनुर्विद्या में माहिर थे। अश्वत्थामा, दुर्योंधन के प्रिय मित्र थे इसलिए उसने युद्ध में कौरवों का साथ दिया। आइए जानते है कि श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप क्यों दिया था।

द्रोणाचार्य ने किया तप

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि द्रोणाचार्य और उनकी पत्नी कृपि ने पुत्र प्राप्ति के लिए हिमालय पर जाकर तप किया था। जिसके बाद भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। द्रोणाचार्य और कृपि की इस संतान का नाम अश्वत्थामा रखा गया।

अश्वत्थामा ने लिया मौत का बदला

महाभारत युद्ध में जब दुर्योंधन की अंतिम सांसे चल रही थी, तो अश्वत्थामा अपने प्रिय मित्र दुर्योंधन के पास पहुंचे। वहां पहुंचकर अश्वत्थामा ने देखा कि इसका मित्र बुरी तरह से घायल अव्स्था में मूछित पड़ा है। तब दुर्योंधन ने कहा कि “हे” मित्र अब मेरा बदला तुम इन पांडु पुत्रों से लेना। इसके बाद उसने पांचों पांडुवों से बदला लेने की योजना बनाई।

श्रीकृष्ण का अश्वत्थामा को श्राप

महाभारत युद्ध के अंत समय में जब अश्वत्थामा ने धोखे से पाण्डव पुत्रों का वध कर दिया, तब पाण्डव भगवान श्रीकृष्ण के साथ अश्वत्थामा का पीछा करते हुए महर्षि वेदव्यास के आश्रम तक पहुंच गए। तब अश्वत्थामा ने पाण्डवों पर ब्रह्मास्त्र का वार किया। ये देख अर्जुन ने भी अपना ब्रह्मास्त्र छोड़ा। महर्षि व्यास ने दोनों अस्त्रों को टकराने से रोक लिया और अश्वत्थामा और अर्जुन से अपने-अपने ब्रह्मास्त्र वापस लेने को कहा।

3 हजार साल के लिए दिया श्राप

तब अर्जुन ने अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया, लेकिन अश्वत्थामा ये विद्या नहीं जानता था। इसलिए उसने अपने अस्त्र की दिशा बदलकर अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर कर दी। यह देख भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया कि तुम तीन हजार वर्ष तक इस पृथ्वी पर भटकते रहोगें और किसी भी जगह, किसी पुरुष के साथ तुम्हारी बातचीत नहीं हो सकेगी।

तुम्हारे शरीर से पीब और लहू की गंध निकलेगी इसलिए तुम मनुष्यों के बीच नहीं रह सकोगे। दुर्गम वन में ही पड़े रहोगे। तब से ही अश्वत्थामा अमर हो गए थे और अब भी जगह-जगह पर पृथ्वी पर भटक रहें हैं।

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