फुलेरा दूज का पर्व राधा-कृष्ण की पूजा और भक्ति का विशेष अवसर है। इस दिन खास तौर पर राधा-कृष्ण की पूजा की जाती है, जो श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक महत्व रखता है। फुलेरा दूज का नाम “फूल” और “दूज” से लिया गया है, जिसमें “फूल” का अर्थ है “खुशियाँ और रंग” और “दूज” का मतलब है “द्वितीय” या “दूसरा दिन”। इस दिन को भाई अपनी बहनों को तिलक करके उन्हें अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना करते हैं।
तिथि: 1 मार्च 2025
तिथी विवरण: इस दिन फाल्गुन शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि रहेगी, जो रात 12:10 तक जारी रहेगी।
साध्य योग: शाम 4:25 बजे तक रहेगा।
अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12:10:41 से 12:56:56 तक।
सूर्योदय: सुबह 6:46 बजे
सूर्यास्त: शाम 6:20 बजे
फुलेरा दूज का महत्व
फुलेरा दूज, जो विशेष रूप से राधा-कृष्ण की पूजा का दिन होता है, हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन शुक्ल द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से ब्रज क्षेत्र में बहुत श्रद्धा और हर्ष के साथ मनाया जाता है। इस दिन का महत्व कई पहलुओं से जुड़ा हुआ है:
- राधा-कृष्ण की पूजा:
फुलेरा दूज राधा और कृष्ण के प्रेम और भक्ति को सम्मानित करने का दिन है। विशेष रूप से राधा का पूजन किया जाता है, क्योंकि वे कृष्ण की परम भक्त और प्रेमिका थीं। इस दिन भक्त भगवान श्री कृष्ण के साथ राधा की पूजा करते हैं, ताकि उनके जीवन में प्रेम, समृद्धि और सुख-शांति आए। - भक्ति और प्रेम का प्रतीक:
इस दिन को प्रेम और भक्ति का प्रतीक माना जाता है। राधा और कृष्ण के बीच प्रेम संबंध को दर्शाते हुए, यह पर्व समर्पण, प्यार, और आध्यात्मिकता का संदेश देता है। - ब्रज क्षेत्र में विशेष महत्व:
फुलेरा दूज को ब्रज क्षेत्र, जहां भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था, में विशेष रूप से मनाया जाता है। यहाँ पर भक्त बड़ी धूमधाम से इस दिन को मनाते हैं, और राधा-कृष्ण के मंदिरों में विशेष पूजा आयोजित की जाती है। - होली के साथ संबंध:
फुलेरा दूज होली के त्योहार के पूर्व में आता है, और यह त्योहार होली की खुशी और रंगों के साथ भी जुड़ा हुआ है। इस दिन लोग एक-दूसरे को रंग और फूलों से सजीव प्रेम का प्रतीक मानकर शुभकामनाएं देते हैं। - समाज में एकता का संदेश:
यह पर्व समाज में एकता और भाईचारे को बढ़ावा देता है, क्योंकि लोग इस दिन एक-दूसरे से प्रेम और स्नेह व्यक्त करते हैं। राधा-कृष्ण का प्रेम इस बात का प्रतीक है कि सच्चा प्रेम बिना किसी भेदभाव के होता है।
इस तरह से, फुलेरा दूज का महत्व धार्मिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यधिक है, क्योंकि यह न केवल आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है, बल्कि समाज में प्रेम, समर्पण, और एकता का संदेश भी फैलाता है।
फुलेरा दूज की कथा:
फुलेरा दूज से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा है जो भगवान श्री कृष्ण और उनकी बहन सुभद्राजी से संबंधित है।
कहा जाता है कि जब श्री कृष्ण ने राक्षसों का वध किया और गोकुल में अपने कृत्यों से लोगों को खुश किया, तब उनकी बहन सुभद्रा उनके पास आईं। सुभद्राजी ने भाई कृष्ण को प्रेमपूर्वक तिलक किया और उन्हें मिठाई खिलाई, साथ ही भाई को अपने घर आने का निमंत्रण दिया। श्री कृष्ण ने अपनी बहन का स्वागत किया और उनके घर गए।
इस दिन, कृष्ण ने अपनी बहन सुभद्रा से प्रेम और कृतज्ञता के रूप में आशीर्वाद लिया। इस परंपरा को फुलेरा दूज के रूप में मनाने की शुरुआत हुई।
इसी दिन, भाई अपनी बहनों को तिलक करके उन्हें आशीर्वाद देते हैं और बहनें अपने भाई के घर भोजन और मिठाई भेजती हैं। यह पर्व भाई-बहन के रिश्ते को और भी मजबूत बनाने के लिए मनाया जाता है।
यह पर्व खास तौर पर गोकुल और मथुरा में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है, क्योंकि यहाँ श्री कृष्ण के जन्म और उनके कर्मों से जुड़ी परंपराएँ बड़ी महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।





