Religion: हमारे हिंदु धर्म में अनेको श्रापों का वर्णन है, हर श्राप के पीछे कुछ न कुछ कारण छिपा हुआ था। कुछ श्रापों में संसार की भलाई निहित थी, तो कुछ के पीछे कथाओं की महत्वपूर्ण भूमिका थी। आज हम आपको रामायण की एक किस्से के बारें में बताएंगे, जो शायद हर किसी को पता ना होगा। वो किस्सा है माता सीता के द्वारा गाय, फल्गू नदी, कौआ, तुलसी और ब्राह्मण को दिया गया श्राप। तो चलिए जानते है कि माता सीता ने इन सब को श्राप क्यों दिया था।
जब भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता को 14 साल का वनवास दिया गया था। राजा दशरथ इस बात से बहुत दुखी थे और यह दुख सहन नहीं कर पाए, जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के समय उनके चारों बेटों में से एक भी बेटा उनके साथ नहीं था। भगवान राम को जब इस बात का पता चला कि उनके पिता की मृत्यु हो गई है तो वह अपने पिता के पिंड दान के लिए बिहार के गया पहुंचे।
सीता ने किया पिंड दान
वहां महाब्राह्मण ने राम और लक्ष्मण को श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने के लिए कहा, तब भगवान राम और लक्ष्मण श्राद्ध का सामान लेने के चले गए। उधर सीता नदी किनारे बैठ कर भगवान राम और लक्ष्मण का इंतजार करने लगी। दशरथ की व्यग्रता बढ़ती जा रही थी। सीता ने राम और लक्ष्मण का काफी इंतजार किया, लेकिन वह नहीं लौटे।
इसी दौरान भूख से व्याकुल दशरथ ने सीता से पिंड भरने की मांग कर दी। माता सीता असमंजस में पड़ गई। माता सीता ने राजा दशरथ की व्याकुलता को समझते हुए यह निर्णय लिया कि वह स्वयं अपने ससुर दशरथ का पिंड दान करेंगी। उन्होंने फल्गू नदी के साथ-साथ, वटवृक्ष, कौआ, तुलसी, ब्राह्मण व गाय को साक्षी मानकर स्वर्गीय राजा दशरथ का पिंडदान विधि विधान के साथ किया।
भगवान राम ने नहीं किया माता सीता पर विश्वास
जिसके बाद राजा दशरथ ने माता सीता के द्वारा किया गया पिंड दान स्वीकार किया। सीता इस बात से बहुत प्रसन्न हुई कि उनकी पूजा दशरथ ने स्वीकार कर ली है। जब भगवान राम और लक्ष्मण श्राद्ध का सामान लेकर वापस पहुंचे तो माता सीता ने उन्हें सारी बात बताई, लेकिन उन्होंने माता सीता की बातों पर विश्वास नहीं किया। उन्होंने कहा कि पिंड दान पुत्र के बिना नहीं हो सकता है।
इसके बाद सीता ने कहा कि वहां उपस्थित फल्गू नदी, तुलसी, कौआ, गाय, वटवृक्ष और ब्राह्मण इस बात की गवाही दे सकते हैं कि मैने पिंड दान किया है। भगवान राम ने जब उन सबसे पिंडदान के बारें में पूछा तो फल्गू नदी, गाय, कौआ, तुलसी और ब्राह्मण पांचों ने झूठ बोला और कहा कि सीता ने कोई पिंडदान नहीं किया है, लेकिन वहां मौजूद वटवृक्ष ने भगवान राम को सारा सत्य बताया। उन्होंने राम से कहा कि सीता ने सबको साक्षी मानकर विधि पूर्वक राजा दशरथ का पिंड दान किया है और फल्गू नदी, गाय, कौआ, तुलसी और ब्राह्मण ये सभी झूठ बोल रहे हैं।
माता सीता ने क्रोधित होकर दिया श्राप
तब माता सीता ने क्रोधित होकर महाब्राह्मण को श्राप दिया कि वह कभी भी संतुष्ट नहीं रहेंगे उसकी दरिद्रता हमेशा बनी रहेगी। इसी कारण महाब्राह्मण कभी दान दक्षिणा के बाद भी संतुष्ट नहीं होते। वहीं सीता ने तुलसी को श्राप दिया कि वह कभी भी गया की मिट्टी में नहीं उगेगी।
यह आज तक सत्य है कि गया कि मिट्टी में तुलसी नहीं उगती और कौओं को हमेशा लड़ झगड़ कर खाने का श्राप दिया था इसलिए कौआ कभी भी खाना अकेले नहीं खाता। माता सीता ने गाय को श्राप दिया कि घर में पूजा होने के बावजूद भी तुम्हें हमेशा दूसरों का झूठा खाना पड़ेगा और तुम जगह-जगह भटकोगी, इसलिए आज भी गाय भटकती रहती है। वहीं सच बोलने पर वटवृक्ष को आशीर्वाद दिया कि उसे लंबी आयु प्राप्त होगी। वह दूसरों को छाया प्रदान करेगा। पतिव्रता स्त्री उनका स्मरण करके अपने पति के दीर्घायु की कामना करेगी।