Cinema Stories : भारतीय सिनेमा का इतिहास काफी पुराना है। अगर इसके पन्नों को पलट कर देखें तो एक से बढ़कर एक किस्से-कहानियां निकल कर सामने आएंगी। आज महिलाएं इंडियन सिनेमा का सबसे जरूरी हिस्सा मानी जाती हैं। शायद ही कोई ऐसी फिल्म हो जो उनके बिना पूरी हो सके। लेकिन एक वक्त था जब महिलाओं का फिल्मों में काम करना गलत माना जाता था। इस सोच को बदला था दुर्गाबाई कामत ने।
सिनेमा की जादुई दुनिया में कई ऐसी बातों का इतिहास रहा है, जिसके लिए अगर अतीत के पन्नों को पलट कर देखें, तो ढेर सारी पुरानी बातों की परत खुलती जाएगी। आज का सिनेमा काफी बदल चुका है। यहां न सिर्फ अलग-अलग जॉनर और भाषा की फिल्में बनती हैं, बल्कि अब सिर्फ महिलाओं को ध्यान में रखते हुए ही किसी मूवी की कहानी तक गढ़ी जाती है।
मगर एक वक्त ऐसा भी था, जब फिल्मों में काम करने के लिए लड़कियों को समाज के ताने सुनने पड़ते थे। साइलेंट फिल्मों के दौर में जब महिलाओं का किरदार भी पुरुष ही निभाया करते थे, तब साहस दिखाते हुए दुर्गाबाई कामत (Durgabai Kamat) ने फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा। उनके आने से दूसरी महिलाओं को अभिनय करने की प्रेरणा और हिम्मत मिली, साथ ही महिलाओं के लिए रास्ते भी खुल गए। यह सब तब था, जब दुर्गाबाई कामत शादीशुदा और एक बेटी की मां थीं।
कौन थीं दुर्गाबाई कामत
1879 में जन्मीं दुर्गाबाई कामत ने 7वीं तक पढ़ाई की थी। वह फेमस मराठी अभिनेता चंद्रकांत गोखले की दादी और ‘हम दिल दे चुके सनम’ में काम करने वाले एक्टर विक्रम गोखले की परदादी थीं। दुर्गाबाई कामत ने आनंद नानोस्कर नाम के शख्स से शादी की थी, जो मुंबई के जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स में हिस्ट्री के टीचर थे। कहा जाता है कि यह शादी लंबे समय तक नहीं और दुर्गाबाई कामत अपनी एक बेटी के साथ अकेले रहने पर मजबूर हो गईं।
दादा साहेब फाल्के की खोज थीं दुर्गाबाई
जब महिलाओं के लिए सिर्फ चारदीवारी ही उनकी दुनिया थी, तब दुर्गाबाई कामत ने उन चुनौतियों को पार करते हुए फिल्म लाइन में काम करने का साहस दिखाया। इसका श्रेय जाता है भारतीय सिनेमा की नींव रखने वाले दादासाहेब फाल्के को। इस तरह दुर्गाबाई कामत इंडियन सिनेमा की पहली एक्ट्रेस बन गईं।
दरअसल, 1913 में जब ‘राजा हरीशचंद्र’ रिलीज हुई, तो महिलाओं के अधिकतर सीन दादासाहेब फाल्के ने पुरुषों से करवाए। सीन तो शूट हो गए, लेकिन वह इससे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें किसी महिला का किरदार पुरुष के रूप में दिखाने पर वास्तविकता नहीं महसूस हो रही थी। ऐसे में उन्होंने आगे की फिल्मों के लिए महिला कलाकार की खोज शुरू कर दी। उस जमाने में जब महिलाओं के घर से बाहर निकलने पर भी पाबंदी थी, तब काफी खोज के बाद दादासाहेब फाल्के को दुर्गाबाई कामत के रूप में अपनी हीरोइन मिली।
बेटी बनी सिनेमा की पहली चाइल्ड आर्टिस्ट
पति से अलग हुई और अकेले बेटी को पालने वाली दुर्गाबाई के लिए उन दिनों समाज में उतनी इज्जत नहीं थी। तब दादासाहेब फाल्के के लाख समझाने के बाद वह फिल्मों में काम करने को राजी हुईं और इस तरह वह भारतीय सिनेमा की पहली अभिनेत्री बन गईं। दुर्गाबाई कामत की पहली फिल्म ‘मोहिनी भस्मासुर’ थी। इस मूवी में उन्होंने पार्वती का रोल प्ले किया था, वहीं उनकी बेटी कमलाबाई ने मोहिनी का किरदार निभाया था। इस तरह कमलाबाई इंडियन सिनेमा की पहली चाइल्ड आर्टिस्ट बन गईं।
एक्टिंग के बाद बढ़ गई थी मुश्किलें
जब ‘मोहिनी भस्मासुर’ रिलीज हुई, तो समाज ने दुर्गाबाई का बहिष्कार कर दिया। साथ ही उनकी फिल्म का भी बहिष्कार कर दिया। तब दुर्गाबाई को फिल्में मिलना भी कम हो गईं। लिहाजा गुजारे के लिए उन्हें बीच में दूसरा काम भी करना पड़ा।
70 फिल्मों में किया काम, 117 साल की उम्र में कहा अलविदा
दुर्गाबाई कामत ने लगभग 70 फिल्मों में काम किया था। उनकी आखिरी मूवी 1980 में रिलीज हुई ‘गहराई’ बताई जाती है। दुर्गाबाई कामत का निधन 117 की उम्र में पुणे में हुआ था।