Kharmas हर साल दो बार आता है। पहला जब सूर्य देव धनु राशि में प्रवेश करते हैं। दूसरा जब सूर्य देव मीन राशि में प्रवेश करते हैं। इस अवधि की कुल समय सीमा एक माह होती है। इस दौरान सभी मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन आदि वर्जित होते हैं।
खरमास का वैज्ञानिक और पौराणिक दृष्टिकोण
खरमास में सूर्य की गति धीमी हो जाती है, जिससे पृथ्वी पर उसका तेज प्रभावित होता है। यह स्थिति सूर्य की राशियों में परिवर्तन के दौरान बनती है। इस कारण, इस माह को शुभ कार्यों के लिए अनुचित माना जाता है।
खरमास की पौराणिक कथा
मार्कण्डेय पुराण में खरमास की कथा का उल्लेख मिलता है। खरमास की अवधि कुल एक माह की होती है। इस दौरान मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। कथाओं के अनुसार, सूर्यदेव धरती के संचालन के लिए लगातार 7 घोड़ों के रथ पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं। लेकिन खरमास के दौरान सूर्यदेव गति धीमी हो जाती है। आइए जानते हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है। पीछे क्या कहानी है।
सूर्य देव और उनके रथ की कहानी
सूर्य देव का रथ और घोड़े:
सूर्य देव अपने रथ पर 7 घोड़ों के साथ ब्रह्मांड की परिक्रमा करते हैं। ये घोड़े लगातार चलते रहते हैं, जिससे सृष्टि का चक्र सुचारु रहता है।
घोड़ों की थकान और गधों का उपयोग:
एक बार रथ के घोड़े थकान और भूख-प्यास से कमजोर हो गए। सूर्य देव ने घोड़ों को आराम देने का विचार किया, लेकिन रथ रोकने से सृष्टि चक्र प्रभावित हो सकता था। तब उन्होंने पास के तालाब पर चर रहे दो गधों को रथ में जोत दिया।
रथ की धीमी गति:
गधों की शक्ति घोड़ों जितनी तेज नहीं थी, जिससे रथ की गति धीमी हो गई। इस धीमी गति के कारण सूर्य देव का तेज भी प्रभावित हुआ। पूरे खरमास के दौरान सूर्य देव ने धीमी गति से परिक्रमा पूरी की।
मकर संक्रांति का महत्व:
मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव ने गधों को वापस छोड़ दिया और घोड़ों को रथ में शामिल किया। इसके बाद सूर्य की गति और तेज पुनः सामान्य हो गया। यही कारण है कि मकर संक्रांति के बाद मौसम में बदलाव होता है और दिन लंबे व तेजस्वी होने लगते हैं।
खरमास का प्रभाव और मान्यताएं
खरमास के दौरान सूर्य देव का तेज कमजोर होने से इसका प्रभाव मनुष्य के जीवन पर भी पड़ता है। इसे अशुभ समय माना जाता है, जिसमें शुभ कार्यों को टालने की सलाह दी जाती है।
खरमास का महत्व पौराणिक कथाओं और खगोलीय घटनाओं से जुड़ा हुआ है। यह समय न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका वैज्ञानिक और पर्यावरणीय प्रभाव भी है। मकर संक्रांति के साथ ही खरमास समाप्त होता है, और सूर्य देव अपनी ऊर्जा और गति पुनः प्राप्त कर लेते हैं, जिससे पृथ्वी पर सकारात्मक बदलाव आते हैं।





