Cinema Stories : वह जिस मैदान में उतरे, वहीं बाजी अपने नाम की। बात हो रही है रामायण में हनुमान का किरदार निभाने वाले दारा सिंह की। दारा सिंह के बारे में जितना भी कहें वो कम है। दारा सिंह भारत के सबसे महान रेसलर बने थे। वो रेसलिंग के साथ-साथ एक्टर, डायरेक्टर और पॉलिटिशियन भी रहे। रामायण धारावाहिक में हनुमान के किरदार ने उन्हें घर घर में मशहूर बना दिया था।
दारा सिंह 50 के दशक में ही बॉलीवुड फिल्मों में एक्टिव हो गए थे। बावजूद इसके उन्होंने अपने पहले प्यार रेसलिंग को नहीं छोड़ा। इस दौरान वो एक्टिंग के साथ-साथ कुश्ती प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहे। दारा सिंह पहली बार सन 1959 में कॉमनवेल्थ चैंपियन बने थे।
दारा सिंह के आगे दुनिया के बड़े-बड़े पहलवान टिक नहीं सके। दारा सिंह ने वर्ल्ड चैंपियनशिप में ऑस्ट्रेलिया के 200 किलों के किंग कॉग जैसे पहलवान को धूल चटा कर इतिहास रचा था। किंग कॉग और दारा सिंह के बीच फाइट 12 दिसंबर 1956 को हुई थी।
28 वर्षीय दारा की तूती बोल रही थी और इस बात से विश्व चैंपियन किंग काफी जलन की भावना रखता था। उसके और भारत के हनुमान के बीच रिंग में जो हुआ वह इतिहास बन गया। 130 किलों के दारा सिंह ने 300 किलों के किंग कॉग को पटखनी देते हुए रिंग के बाहर ही फेंक दिया था। यहीं नहीं उन्होंने किंग को उठा-उठाकर पटका और लात-घूसे भी मारे।
दारा सिंह का ये दांव हैरान कर देने वाला था। बतां दे कि दारा सिंह ने अपने करियर में करीब 500 प्रोफेशनल कुश्तियां लड़ी और सारी जीती। उन्होंने रुस्तम-ए-पंजाब और रुस्तम-ए-हिंद जैसे टाइल जीते। दारा सिंह ने रामानंद सागर के शो रामायण में हनुमान का किरदार निभाया था, जोकि अमर हो गया।
500 मुकाबले लड़े और सभी जीते
दारा सिंह ने 60 के दशक में ‘बिल वर्ना’, ‘फिरपो ज़बिस्ज़को’, ‘जॉन दा सिल्वा’, ‘रिकिडोज़न’, ‘डैनी लिंच’ और ‘स्की हाय ली’ जैसे धाकड़ पहलवानों को धूल चटाकर दुनिया भर में भारतीय पहलवानी का डंका बजाया। सन 1983 में मुंबई में आयोजित ‘वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप’ के दौरान अमेरिकी रेसलर Lou Thesz को चारों खाने चित्त कर ‘वर्ल्ड चैंपियनशिप’ का खिताब अपने नाम करके पूरी दुनिया को भारत की ताकत का एहसास कराया था। दारा सिंह ने अपने 50 साल के रेसलिंग करियर में करीब 500 मुक़ाबले लड़े और कोई भी मुकाबला हारा नहीं।
दारा सिंह की डाइट
दारा सिंह प्रतिदिन 1 से 2 घंटे की ट्रेनिंग के बाद तगड़ी डाइट लिया करते थे, लेकिन वो दिन में सिर्फ दो ही बार खाना खाते थे। वो रोजाना 2 लीटर दूध, 100 ग्राम बादाम, मुरब्बा और शुद्ध घी, आधा किलो मीट, 6 से 8 रोटी खा जाते थे। कसरत करने के बाद वो रोजाना ठंडाई भी पीते थे। इसके अलावा वो चिकन या फिर लैंब सूप पीने के भी शौकीन थे। अपनी बॉडी को फिट रखने के लिए वाले दारा सिंह हफ़्ते में एक दिन उपवास भी रखते थे। वो ऐसा इसलिए करते थे ताकि उनके शरीर से सारे टॉक्सिन्स निकल जाएं और उनका मेटाबोलिज्म दुरुस्त बना रहे ।
यूं शुरू हुआ कुश्ती का सफर
साल 1947 में जब देश आजादी का स्वाद चख रहा था, उस वक्त दारा सिंह अपनी पहलवानी का लोह मनवाने सिंगापुर पहुंच गए। वहां उन्होंने मलेशिया के पहलवान को पटखनी देकर अपना नाम रोशन कर लिया। 1954 में वह भारतीय कुश्ती के चैंपियन बने तो कॉमनवेल्थ में भी मेडल अपने नाम किया। उस दौर में अखाड़े में दारा सिंह की दादागीरी इतनी ज्यादा बढ़ गई थी कि विश्व चैंपियन किंग कॉन्ग भी उनके सामने टिक नहीं पाए थे।
कुश्ती में जीती हर जंग
किंग कॉन्ग को पटखनी देने के बाद दारा सिंह के सामने कनाडा और न्यूजीलैंड के पहलवानों ने खुली चुनौती दी। दारा सिंह ने कनाडा के चैंपियन जॉर्ज गोडियांको और न्यूजीलैंड के जॉन डिसिल्वा को भी टिकने नहीं दिया। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि जब तक विश्व चैंपियनशिप न जीत लूंगा, तब तक कुश्ती लड़ता रहूंगा। 29 मई 1968 के दिन अमेरिका के विश्व चैंपियन लाऊ थेज को हराकर वह फ्रीस्टाइल कुश्ती के बेताज बादशाह बने।
आपको जानकर हैरानी होगी कि 55 साल के दौर में उन्होंने 500 मुकाबले लड़े और हर किसी में जीत हासिल की। साल 1983 में कुश्ती का आखिरी मुकाबला जीत कर उन्होंने पेशेवर कुश्ती को अलविदा कह दिया था। उस दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने उन्हें अपराजेय पहलवान के खिताब से नवाजा था।
फिल्मों में भी दिखाया दम
साल 1952 के दौरान दारा सिंह ने फिल्म संगदिल से बॉलीवुड में कदम रखा। इसके बाद उन्होंने फौलाद, मेरा नाम जोकर, धर्मात्मा, राम भरोसे, मर्द समेत तमाम फिल्मों में काम किया और अपनी अमिट छाप छोड़ी। बता दें कि दारा सिंह ने अपने करियर में 500 से ज्यादा फिल्मों में अपना दम दिखाया। रामानंद सागर के सीरियल रामायण में उन्होंने भगवान हनुमान का किरदार निभाया, जिसके बाद उन्हें कई जगह भगवान की तरह पूजा जाने लगा। कहा जाता है कि इस किरदार के लिए दारा सिंह ने मांसाहार तक छोड़ दिया था।
कलम से भी साबित की कारीगरी
दारा सिंह ने कलम से भी दम दिखाने में कोई कदम नहीं छोड़ी। उन्होंने साल 1989 में अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘मेरी आत्मकथा’ लिखी, जो 1993 के दौरान हिंदी में भी प्रकाशित हुआ। इसके बाद उन्होंने ‘नानक दुखिया सब संसार’ फिल्म बनाई, जिसे उन्होंने खुद ही डायरेक्ट और प्रोड्यूस किया। उन्होंने हिंदी के अलावा पंजाबी में भी कई फिल्में बनाईं और इस नई विधा में भी अपनी कारीगरी साबित की।
राजनीति में भी किया राज
अखाड़े के बाद फिल्मों और राइटिंग में अपना दमखम दिखाने के बाद दारा सिंह ने राजनीति की दुनिया में भी दस्तक दी। उन्होंने 1998 के दौरान बीजेपी जॉइन करके अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। साल 2003 में वह राज्यसभा सांसद बने। इसके अलावा जाट महासभा के अध्यक्ष भी थे।
बस इस चीज से हार गए दारा सिंह
अपनी जिंदगी में रेसलिंग से लेकर एक्टिंग-राइटिंग की फील्ड में हर बाजी जीतने वाले दारा सिंह जिंदगी की जंग में हार गए थे। दरअसल, 7 जुलाई 2012 के दिन उन्हें दिल का दौरा पड़ा, जिसके सामने यह अपराजित पहलवान भी हार गया। दौरा पड़ने के बाद उन्हें मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन उनकी हालत लगातार बिगड़ती चली गई और 12 जुलाई को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।