जूनियर महिला कोच के यौन शोषण मामले के आरोपी हरियाणा के पूर्व खेल मंत्री संदीप सिंह को चंडीगढ़ कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने संदीप सिंह की अग्रिम जमानत याचिका मंजूर कर ली है। बता दें कि जूनियर महिला एथलीट कोच ने संदीप सिंह पर यौन शोषण के आरोप लगाए थे। कुछ दिन पहले ही चंडीगढ़ पुलिस ने अदालत में चार्जशीट दाखिल की थी। वहीं कोर्ट के इस फैसले पर जूनियर महिला कोच ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। महिला कोच का कहना है कि वह इस फैसले को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में चैलेंज करेगी।
इससे पहले वीरवार को चंडीगढ़ कोर्ट में दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा था। वहीं पूर्व खेल मंत्री संदीप सिंह की अग्रिम जमानत याचिका पर चंडीगढ़ पुलिस की एसआईटी अपने जवाब में जमानत नहीं दिए जाने की दलील दे चुकी है। एसआईटी का कहना है कि पूर्व खेल मंत्री की जमानत का कोई आधार नहीं बनता है, इसलिए जमानत याचिका को खारिज कर देना चाहिए।
जूनियर महिला कोच ने 26 दिसंबर 2022 को हरियाणा के खेल मंत्री संदीप सिंह पर यौन शोषण के आरोप लगाए थे। इसके बाद मंत्री संदीप सिंह ने पत्रकारवार्ता के माध्यम से उन पर लगाए गए आरोपों को सिरे से खारिज किया था। 28 दिसंबर 2022 को हरियाणा के तत्कालीन डीजीपी पीके अग्रवाल ने जांच के लिए तीन सदस्यों की एसआईटी बनाई थी। 31 दिसंबर 2022 को पुलिस ने संदीप सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था। मामला दर्ज होने के बाद 1 जनवरी 2023 को मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने संदीप सिंह से खेल विभाग वापस ले लिया था।
आरोपी के व्यवहार पर निर्भर करता है अग्रिम जमानत का अधिकार
जांच एजेंसी ने आरोपी का लाई डिसेप्शन टेस्ट करने के लिए अदालत में 10 मार्च को अर्जी दायर की थी। अदालत ने जवाब दायर करने के लिए दिए 13 अप्रैल के अंतिम अवसर पर आरोपी ने जवाब दायर कर टेस्ट करवाने से इंकार कर दिया था। इसके बाद 5 मई को अर्जी का निपटारा हो गया। इससे यह भी सामने आया है कि आरोपी की ओर से जांच एजेंसी को सहयोग नहीं किया। दूसरी ओर अग्रिम जमानत का अधिकारी विशेषाधिकार होता है, जिसमें आरोपी के व्यवहार पर विचार करना सबसे अहम होता है। लाई डिसेप्शन टेस्ट की अर्जी पर लंबे समय तक जवाब न देना और बाद में इसके लिए मना कर देना दर्शाता है कि आरोपी सही तथ्य छिपा रहा है।
बयान और जांच में सामने आए तथ्यों के बीच है विरोधाभास
पूर्व खेल मंत्री संदीप सिंह की अग्रिम जमानत याचिका के विरोध में कहा गया है कि याचिकाकर्ता संदीप सिंह ने जान-बूझकर मामले से जुड़े तथ्यों को छिपाया है। इसमें जांच एजेंसी को प्रभावित करने और यही तथ्यों को निर्धारित करने में सहयोग न करने वाली जानकारी शामिल है। आरोपी पुलिस के नोटिस के बाद 7 जनवरी, 10 फरवरी, 2 जून और 2 अगस्त को पुलिस जांच में शामिल हुआ था। संदीप सिंह की ओर से पुलिस को दिए बयान और जांच में सामने आए तथ्यों के बीच विरोधाभास है।