हिंदु धर्म में कार्तिक माह की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी मनाया जाता है। इस दिन तुलसी और शालिग्राम जी का विवाह कराया जाता है। वहीं कुछ लोग कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को तुलसी विवाह करते है। हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का बड़ा महत्व है। मान्यता है कि ऐसा करने से कन्यादान के समान पुण्य मिलता है और घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है।
जगत के पालनहार भगवान विष्णु को तुलसी अति प्रिय है। तुलसी माता की पूजा करने से भगवान विष्णु शीघ्र प्रसन्न होते हैं। उनकी कृपा से साधक को जीवन में सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है।
तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त
तुलसी विवाह का शुभ समय आज रात 11 बजकर 3 मिनट पर कार्तिक माह की एकादशी तिथि को प्रारंभ होगा और 23 नवंबर को रात 9 बजे समाप्त होगा। इसलिअ उदयातिथि के अनुसार, 23 नवंबर को देवउठनी एकादशी मनाया जाएगा। इस दिन सांयकाल की पूजा का समय शाम 6 बजकर 50 मिनट पर शुरु होगा और 8 बजकर 9 मिनट पर समाप्त होगा।
तुलसी विवाह की सामग्री
हल्दी की गांठ, शालिग्राम, गणेशजी की प्रतिमा, श्रृंगार सामग्री, विष्णुजी की प्रतिमा, फल, फूल, धूप-दीप, हल्दी, हवन सामग्री, गन्ना, लाल चुनरी, अक्षक, रोली, कुमकुम, तिल, घी, आंवला, मिठाई, तुलसी का पौधा समेत पूजा की सभी जरुरी चीजें एकत्रित कर लें।
तुलसी विवाह की विधि
तुलसी के पौधे के चारो ओर मंडप बनाएं।
तुलसी के पौधे के ऊपर लाल चुनरी चढ़ाएं।
तुलसी के पौधे को शृंगार की चीजें अर्पित करें।
श्री गणेश जी पूजा और शालिग्राम का विधिवत पूजन करें।
भगवान शालिग्राम की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसीजी की सात परिक्रमा कराएं।
आरती के बाद विवाह में गाए जाने वाले मंगलगीत के साथ विवाहोत्सव पूर्ण किया जाता है।
तुलसी पूजा के समय इस मंत्र का करें जाप
तुलसी विवाह के दिन माता तुलसी का विवाह भगवान शालिग्राम के साथ किया जाता है। इस दौरान तुलसी पूजा करते वक्त तुलसी जी के मंत्र जाप जरुर करना चाहिए।
तुलसी स्तुति मंत्र- देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये
तुलसी मंगलाष्टक मंत्र- ॐ श्री मत्पंकजविष्टरो हरिहरौ, वायुमर्हेन्द्रोऽनलः चन्द्रो भास्कर वित्तपाल वरुण, प्रताधिपादिग्रहाः प्रद्यम्नो नलकूबरौ सुरगजः, चिन्तामणिः कौस्तुभः स्वामी शक्तिधरश्च लांगलधरः, कुवर्न्तु वो मंगलम्
तुलसी माता का ध्यान मंत्र – तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी। धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।। लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्। तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।
तुलसी नामाष्टक मंत्र – वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी। पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।। एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम। य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।
तुलसी और शालिग्राम का विवाह
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, वृंदा यानि तुलसी जालंधर नाम के असुर की पत्नी थी। तुलसी के सतीत्व के कारण देवता जालंधर को नहीं मार सकते थे। भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप बनाकर तुलसी का सतीत्व भंग कर दिया। इसके बाद भगवान शिव ने जालंधर को मार दिया।
जब तुलसी को ये बात पता चली तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया, और खुद सती हो गई। जहां वो सती हुईं उस जगह तुलसी पौधा उग गया था, जिसे भगवान विष्णु जी ने तुलसी नाम दिया और बोले कि शालिग्राम नाम से मेरा एक रूप इस पत्थर में हमेशा रहेगा। यही कारण है कि हर साल देवउठनी एकादशी पर विष्णु जी के स्वरूप शालिग्राम और तुलसी का विवाह कराया जाता है।
देवउठनी एकादशी का महत्व
देवउठनी एकादशी के दिन चातुर्मास का भी समापन हो जाता है इसीलिए भी इस एकादशी को विशेष माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, चातुर्मास में भगवान विष्णु आराम करते हैं।
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवता शयन को जाते हैं और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन योग निद्रा से जगते हैं, इसी के साथ चातुर्मास भी समाप्त हो जाता है। इसीलिए इसे देवोत्थान एकादशी कहा जाता है। हरि के जागने के बाद चार महीनों से स्थगित शुभ और मांगलिक कार्य पुन: शुरू हो जाते हैं।
न करें यह काम
व्रत के दिन चावल, अनावश्यक जल, केले, बाल नाखून, साबुन का प्रयोग न करें। एकादशी को व्रत रख कर प्रातः काल भद्रा रहित मुहूर्त में पंचदेव पूजन करें और पूरे दिन विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। दूसरे दिन द्वादशी तिथि को गणेश, भगवान विष्णु शालीग्राम, लक्ष्मी पूजन कर श्रद्धा पूर्वक तुलसी विवाह कर सुख शांति की कामना करें।