Jagannath Temple Ratna Bhandar

Jagannath Temple रत्न भंडार खुलने पर हुआ खुलासा, खजाने के रहस्य से उठा पर्दा, जानें कैसे सुलझी अबूझ पहेली

देश धर्म

ओडिशा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर(Jagannath temple) का खजाना रविवार को 46 साल बाद फिर से खोला गया। इससे पहले 1978 में रत्न भंडार(Ratna Bhandar) के दरवाजे खोले गए थे, इसलिए 11 सदस्यीय टीम(11 member team) की उपस्थिति में भंडार के दरवाजे खोले जाने से पहले विधि-विधानपूर्वक प्रभु जगन्नाथ की पूजा की गई और पूरी प्रक्रिया के सफल होने के लिए उनका आशीर्वाद लिया।

बता दें कि यह रत्न भंडार भगवान जगन्नाथ को चढ़ाए गए बहुमूल्य सोने और हीरे के आभूषणों का घर(home of precious gold and diamond jewellery) है। राजा अनंगभीम देव(King Anangbhima Dev) ने भगवान जगन्नाथ के आभूषण तैयार करने के लिए बहुत बड़ी मात्रा में सोना दान किया था। खजाने में भगवान जगन्नाथ के सोने से बने मुकुट, सोने के तीन हार हैं, जिसमें से प्रत्येक का वजन 120 तोला है। रिपोर्ट में भगवान जगन्नाथ और बलभद्र के सोने से बने श्रीभुजा का उल्लेख किया गया है। इसके मुताबिक आंतरिक खजाने में करीब 74 सोने के आभूषण हैं, जिसमें से प्रत्येक का वजन 100 तोला से अधिक है। सोने, हीरे, मूंगा और मोतियों से बनी प्लेटें हैं. इसके अलावा 140 से ज्यादा चांदी के आभूषण भी खजाने में मिले हैं।

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वर्ष 2018 में ओडीशा के तत्कालीन कानून मंत्री प्रताप जेना ने विधानसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि जब 1978 में रत्न भंडार के दरवाजे खोले गए थे, तब करीब 140 किलो सोने के गहने, 256 किलो चांदी के बर्तन मिले थे। पिछले साल अगस्त में जगन्नाथ मंदिर प्रबंध समिति ने राज्य सरकार से सिफारिश की थी की रत्न भंडार 2024 की वार्षिक रथ यात्रा के दौरान खोला जाए।

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रत्न भंडार को लेकर ऐसी अफवाहें थी कि भंडार में सांप मौजूद हैं जो प्रभु जगन्नाथ के खजाने की रक्षा करते हैं। लेकिन समिति के सदस्यों ने बताया कि खजाने के अंदर कोई सांप नहीं मिले और जगन्नाथ मंदिर का निर्माण 12 वीं शताब्दी में हुआ था। इस मंदिर में उस वक्त एक रत्न भंडार भी बनाया गया था।

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2018 में ओडिशा हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को निरीक्षण के लिए पुरी जगन्नाथ मंदिर का रत्न भंडार खोलने की अनुमति देने का निर्देश दिया था। लेकिन ओडिषा सरकार की ओर से कहा गया कि रत्न भंडार की चाबियां नहीं मिल रही। वही पुरी जगन्नाथ मंदिर का रत्न भंडार लूटने के लिए 15 बार आक्रमण हुआ था। पहली बार 1451 में और आखिरी बार 1731 में मोहम्मद तकी खां द्वारा मंदिर पर हमला किया गया था।

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