- सुप्रीम कोर्ट ने तीसरे बच्चे पर भी मातृत्व अवकाश को संवैधानिक अधिकार माना, मद्रास हाईकोर्ट का आदेश रद्द किया।
- महिलाओं को गरिमा व सामाजिक न्याय के साथ कार्यस्थल पर अधिकार देने की बात कोर्ट ने स्पष्ट की।
- राज्य की दो-बच्चों की नीति पर सुप्रीम कोर्ट ने महिला की व्यक्तिगत परिस्थिति को प्राथमिकता दी और उसकी दूसरी शादी को भी मान्यता दी।
SC Says State Can’t Deny Women Reproductive Rights देश की कामकाजी महिलाओं के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक और राहत भरा फैसला सुनाया है। 24 मई 2025 को आए इस फैसले में कोर्ट ने कहा कि मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) कोई दया का विषय नहीं, बल्कि महिलाओं का संवैधानिक अधिकार है।
जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने एक सरकारी शिक्षिका के मामले में मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें उसे तीसरे बच्चे के जन्म पर मातृत्व अवकाश देने से इनकार किया गया था। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की जनसंख्या नीति के तहत यह फैसला दिया था, जिसमें दो से अधिक बच्चों पर मैटरनिटी लीव की अनुमति नहीं दी जाती।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि महिलाएं कार्यबल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, और उन्हें गरिमा और समानता के साथ कार्य करने का अधिकार है। मातृत्व के समय महिलाएं शारीरिक और मानसिक रूप से गहरे प्रभाव में होती हैं, और उन्हें न केवल स्वास्थ्य लाभ का अधिकार है, बल्कि शिशु पालन का भी पूरा अवसर मिलना चाहिए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि महिला की दूसरी शादी से जुड़ी परिस्थिति को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। ऐसे में तीसरे बच्चे के जन्म पर राज्य का दो-बच्चों की नीति का हवाला देना उचित नहीं है।
हर महिला को प्रजनन संबंधी निर्णय लेने का पूरा हक है, जिसमें राज्य को अनुचित हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है।
यह फैसला देशभर की लाखों कामकाजी महिलाओं को राहत देगा। अब सरकारी या निजी क्षेत्र की महिलाएं, चाहे वह तीसरा बच्चा ही क्यों न हो, मातृत्व अवकाश के अधिकार से वंचित नहीं की जा सकेंगी।