देवी बगलामुखी हिमाचल(Himachal) प्रदेश के जिला कांगड़ा में है। माना जाता है कि यह मंदिर महाभारत काल में बना था। एक बार महाभारत के दौरान पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान एक रात में बनाया था। उन्होंने मां बगलामुखी की कृपा पाने के लिए विशेष पूजा की थी। यहां पर पांडवों ने युद्ध की शक्ति प्राप्त करने के लिए भी पूजा की थी।
बता दें कि मंदिर के प्राचीन इतिहास के साथ-साथ प्राचीन शिवालय में आदमकद शिवलिंग स्थापित हैं। लोग इस मंदिर में मां के दर्शन के बाद जलाभिषेक करते हैं। यहां का वातावरण शांतिपूर्ण है और यह मंदिर लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है। मां बगलामुखी को पीला रंग अति प्रिय है, इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग होता है। यहां की हर चीज पीले रंग की होती है। मां के मंदिर में भैरव महाकाल हैं और इनकी उपासना रात्रि काल में करने से विशेष सिद्धि प्राप्त होती है।
मां बगलामुखी का मंदिर शत्रुनाशक है और इसे अलग-अलग प्रकार के संकटों के समय में भी आश्रय प्राप्त होता है। इसके साथ ही यहां पर हवन का भी महत्व है, जो कि लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाता है। मंदिर में आने वाले कई विशेष व्यक्तियों ने इसे अपने साधना का केंद्र बनाया है और इसे भेटने आते हैं। उनमें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाई प्रह्लाद मोदी भी शामिल हो चुके हैं। सरल भाषा में कहा जाए तो मां बगलामुखी का मंदिर एक शक्तिशाली स्थान है, जो लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाता है और उन्हें समस्याओं से निकालता है।
लंका के दशानन की इष्ट देवी
मां बगलामुखी को दस महाविद्याओं में आठवां स्थान प्राप्त है। मां की उत्पत्ति ब्रह्मा द्वारा आराधना करने की बाद हुई थी। त्रेतायुग में मां बगलामुखी को रावण की ईष्ट देवी के रूप में भी पूजा जाता था। रावण ने शत्रुओं का नाश कर विजय प्राप्त करने के लिए मां की पूजा की। लंका विजय के दौरान जब इस बात का पता भगवान श्रीराम को लगा, तो उन्होंने भी मां बगलामुखी की आराधना की थी। बगलामुखी का यह मंदिर महाभारत काल का माना जाता है।
मंदिर में होते हैं शत्रुनाशिनी यज्ञ
शत्रुनाशिनी देवी मां बगलामुखी मंदिर में मुकदमों में फंसे लोग, पारिवारिक कलह व जमीनी विवाद को सुलझाने के लिए, वाकसिद्धि, वाद-विवाद में विजय, नवग्रह शांति, ऋद्धि-सिद्धि प्राप्ति और सर्व कष्टों के निवारण के लिए शत्रुनाश हवन करवाते हैं। इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है।
कैसे पहुंचे बगलामुखी मंदिर
कांगड़ा शहर से बगलामुखी मंदिर की दूरी करीब 26 किलोमीटर है। अपने निजी वाहन में 40-45 मिनट में मंदिर पहुंचा जा सकता है। बस सुविधा भी यहां के लिए काफी रहती है। वहीं जिला ऊना से मंदिर की दूरी 80 किलोमीटर की है। इसके अलावा अगर आप हवाई मार्ग से आना चाहते हैं तो गगल कांगड़ा तक चंडीगढ़ या दिल्ली से फ्लाइट लेकर आ सकते हैं। गगल से करीब 35 किलोमीटर सड़क मार्ग से जाना होगा। वहीं रेल मार्ग से भी पठानकोट से कांगड़ा या रानीताल तक ट्रेन मिलेगी। उसके बाद निजी वाहन या बस से जाना पड़ता है।