Shree Krishna का जन्म मथुरा में हुआ और उनका बचपन गोकुल में बीता था। अपने मामा कंस को मारकर श्रीकृष्ण मथुरा और वृंदावन को छोड़कर चले गए थे। जिसके बाद उन्होंने गुजरात में समुद्र तट पर एक नगरी स्थापित की। जिसे द्वारका नगरी के नाम से जाना जाता था।
मथुरा को छोड़कर क्यों गए श्रीकृष्ण
ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण जरासंध के अत्याचारों को रोकने के लिए मथुरा को छोड़कर चले गए थे और गुजरात में समुद्र किनारे दिव्य नगरी बसाई। जिसका नाम द्वारका रखा गया। महाभारत के 36 वर्ष बाद द्वारका नगरी समुंद्र में डूब गई थी। जानकारी के अनुसार बता दें द्वारका डूबने के पीछे दो पौरणिक कथाएं हैं।
गांधारी ने दिया था श्राप
पहली पौराणकि कथा में बताया जाता है कि महाभारत में पांडुवों की जीत के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को राजगद्दी पर बैठाया। जिसके बाद श्रीकृष्ण कौरवों की मां गांधारी से मिलने पहुंचे। श्रीकृष्ण को देखकर पहले तो गांधारी खूब रोईं।
उसके बाद भगवान श्रीकृष्ण को युद्ध का दोषी मानते हुए उन्होंने कृष्ण को श्राप दिया कि यदि मैंने अपने आराध्य की सच्चे मन से आराधना की है और मैंने अपना पत्नीव्रता धर्म निभाया है तो जिस तरह मेरे कुल का नाश हुआ है, उसी तरह तुम्हारे कुल का नाश भी तुम्हारी आंखों के सामने होगा। कहा जाता है कि इसी श्राप की वजह से द्वारका नगरी पानी में समा गई थी।
दूसरा कारण ऋषियों का श्राप
यदि दूसरी पौराणकि कथा की बात करें तो श्रीकृष्ण के पुत्र सांब अपने मित्रों के साथ हंसी-ठिठोली कर रहे थे। उस समय महर्षि विश्वामित्र और कण्व ऋषि ने द्वारका में प्रवेश किया। जब सांब के नवयुवक मित्रों की दृष्टि इन महान ऋषियों पर पड़ी तो वे इन पुण्य आत्माओं का अपमान कर बैठे।
उन्होंने सांब को एक महिला के वेश में तैयार किया और महर्षि विश्वामित्र तथा कण्व ऋषि के सामने पहुंचकर उनसे बोले, यह स्त्री गर्भवती है। आप देखकर बताइए कि इसके गर्भ से क्या उत्पन्न होगा? दोनों ही ऋषि इस परिहास से अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने कहा कि इसके गर्भ से एक मूसल उत्पन्न होगा, जिससे तुम जैसे दुष्ट, असभ्य और क्रूर लोग अपने समस्त कुल का नाश कर लेंगे।
श्रीकृष्ण ने किया ऋषियों का सम्मान
वहीं जब इस घटना का पता श्रीकृष्ण को चला तो उन्होंने कहा कि यह ऋषियों की वाणी है, व्यर्थ नहीं जाएगी। जिसके अगले ही दिन सांब ने एक मूसल उत्पन्न किया। इस मूसल को राजा उग्रसेन ने समुद्र में फिकवा दिया।
साथ ही श्रीकृष्ण ने नगर में घोषणा करवा दी कि अब कोई भी नगरवासी अपने घर में मदिरा नहीं बनाएगा क्योंकि कृष्ण नहीं चाहते थे कि उनके कुल के लोग और संबंधी मदिरा के नशे में कोई अनुचित व्यवहार कर परिवार सहित एक-दूसरे का नाश कर बैठें।
अर्जुन का द्वारका में आगमन
अब ऋषियों की वाणी तो सच होनी ही थी। उसके पश्चात सभी यदुवंशी आपस में लड़-लड़कर मरने लगे थे। सभी यदुवंशियों की मृत्यु के बाद बलराम ने भी अपना शरीर त्याग दिया था और श्रीकृष्ण पर किसी शिकारी ने हिरण समझकर बाण चला दिया था।
जिसके बाद भगवान श्रीकृष्ण देवलोक चले गए। जब पांडवों को द्वारका में हुई अनहोनी का पता चला तो अर्जुन तुरंत द्वारका गए और श्रीकृष्ण के बचे हुए परिजनों को अपने साथ इंद्रप्रस्थ लेकर चले गए। इसके बाद देखते ही देखते पूरी द्वारका नगरी रहस्यमयी तरीके से समुंद्र में समा गई।